दिल जिसके इंतिजार मे , उम्मीदों के घर बना रहा है
वो गैरों के साथ , मोह्ब्बत के त्योहार मना रहा है
मुझसे कह्ता था साथ रहेगा सांसो के बाद भी
आज जब कोइ नही ,वो भी अपना फैसला सुना रहा है
सब इश्क के बगीचों में मोहब्बत के फूल चुन रहे हैं
मुझे मेरा खुदा दिल ही दिल में कांटे चुभो रहा है
परिंदो के घोसलों में भी आज कुछ चहेल-पहेल है
जैसे वषों बाद लौट कर , कोई माझि अपना आ रहा है
एक ही चीज़ तो मांगी थी , मैनें हमेशा अपनी दुऑओ में
क्या करूगा उसके बदले गर वो नया ताजमहल भी बना रहा है
हवाऍ तेज हैं साहिल पे अकेला तनहा बैठा ' शेष '
सोच रहा है उसने जो किया उसी कि सजा पा रहा है
ektarfa bafa ham nibhaate rhe hai
ReplyDeletetanhaai me bhi muskuraate rhe hai
-ami'ajim'