बस चन्द पुरानी बाते है
गुज़री कभी तेरे तसब्बुर मे
वो कुछ तनहा सी राते है
मजबूत इरादे वलो को
पथ्थर दिल लोग समझते है
जा कर देखो मन्दिर मे
आखिर पूजे वो ही जाते है
आती है जवानी जब
कई मुसाफ़िर गुज़रा करते है
ये सावन का महीना है
बादल आते जाते है
कुछ तनहा से लोग जमाने मे
इस तरहा वक्त बिताते है
जैसे हर त्योहार पे बन्जारे
पोशाक पुरानी सजाते है
तनहा - तनहा जीने मे
एक सुकून भी मिलता है
ह्न्सना हो तो मिलना 'शेष' से
वो ह्न्सने का राज़ बताते है
एक कल मेरा है तेरा भी होगा
कुछ मैने खोया तू ने पाया होगा
न तू कहे न मै कहू
सब बेकार कि बाते है
अरमान...
ReplyDeleteतो मेरे भी थे,
ज़ीने के,
मगर ये हो ना सकेगा.....
ये फ़रिस्तें मुझे बहुत सिद्दत चाहते है.........