Thursday, February 3, 2011

अफ़साना


तेरा मेरा अफ़साना क्या है
बस  चन्द  पुरानी  बाते  है
गुज़री कभी तेरे तसब्बुर मे
वो  कुछ  तनहा  सी  राते  है

मजबूत   इरादे   वलो    को
पथ्थर दिल लोग समझते है
जा   कर  देखो   मन्दिर   मे
आखिर पूजे  वो  ही  जाते  है

आती    है    जवानी     जब
कई मुसाफ़िर गुज़रा करते है
ये   सावन   का   महीना  है
बादल   आते    जाते    है

कुछ तनहा से लोग जमाने मे
इस  तरहा  वक्त    बिताते   है
जैसे  हर  त्योहार  पे  बन्जारे
पोशाक   पुरानी    सजाते   है

तनहा - तनहा   जीने   मे
एक  सुकून   भी  मिलता है
ह्न्सना हो तो मिलना 'शेष' से
वो  ह्न्सने  का  राज़  बताते है

एक  कल मेरा है  तेरा भी होगा
कुछ मैने खोया तू ने पाया होगा
   तू   कहे       मै      कहू
सब    बेकार   कि   बाते    है

1 comment:

  1. अरमान...
    तो मेरे भी थे,
    ज़ीने के,
    मगर ये हो ना सकेगा.....
    ये फ़रिस्तें मुझे बहुत सिद्दत चाहते है.........

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