Thursday, February 10, 2011

...अमन.......


उजली  रात  के  आंचल  पर 


जानें कौन सारंगी सा बजाता है    

शायद कोई फ़रिस्ता गुज़रा है शहर से 

कौन ये आमन  के गीत  सुनता है 

कब ये उलझी मज़हबी रंजिशे 

इस  चमन  कि  सुलझेगीं 
वसुधैव-कुटुम्बकम का सपना
क्यों सच से दूर होता जाता है


जब उसनें तुझे एक सा बनाया

तु  क्यों   यहॉ   बंट  गया
ज़मीं के नीचे  कोई  मज़हब नहीं
हर धर्म चिता के साथ जल जाता है



ओ  आतंकवाद  का   घिनौना  दर्पण 

ओ शहर  मे आपनी लाठिओं का प्रदर्शन
सब ठीक  हो  जाऐ गर  तु  इंसा बने
क्यों एक दूसरे को आपनी ताकत दिखाता है













आगर  कह्ते  हो की साबका सांई 

बच्चों  के  दिलों  में  बसता  है

तुम ही बताओ की बचपन में कौन
एक दूसरे को अपन मज़हब बाताता है




क्यों उसे मज़ारो  पे  मंदिरो पे ढूंडता है

एक  शक्ती  के  लिये  दर-दर घूमता है
पाक दिल पाक ईमांन बना के खुद को देख
हर  धर्म  तुझमें  नजर  आता  है ॥   

No comments:

Post a Comment