Thursday, February 24, 2011

एक तेरे शहर में, एक मेरे शहर में



    
      अपनी मोहब्बतों मे बदलने लगा मंज़र
      एक  तेरे  शहर  में,  एक  मेरे  शहर  में
       
     झिलमिल धूप  में कुछ बादल के टुकडे
     मशरुफ़ है  देखो  इधर  उधर  चलने मे
     एक  तेरे  शहर  में ,  एक  मेरे  शहर में

       कुछ  बातें  तेरी  कुछ  बाते  मेंरी
       होने  लगी  हर  गली-मोहल्ले में
       एक तेरे शहर में,एक मेरे शहर में
 
      आया  मौसम  फिर  दस्तक  दी है
      पुरानें घोसलों पे कुछ नए परिंदो नें
      एक  तेरे शहर में, एक मेरे शहर में

      तनहा  चांद्  जाने  क्यों  चुप सा है
      क्या  सोच  रहा है  कुछ  कहनें  में
      एक तेरे शहर में, एक मेरे शहर में
 
    एक  नदी  हम  दोनों  के शहर में
       क्यों ना दिये में भेजें ख़त रख के
       एक तेरे शहर में,एक मेरे शहर में 
 
   अब गुज़रे लमहो को कुरेदो 'शेष्'
      फिर  आऍगे वो  सावन  के महीनें 
      एक तेरे शहर में, एक  मेरे  शहर में








1 comment:

  1. मैं तन्हा था और तन्हा ही रहा
    ढुंढा बहुत पर कोई ना मिला
    न तेरे शहर में, न मेरे शहर में............

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