अब के साल, परदेश में मेरे साथ
छोटे से कमरे में, थोडा उदास
थी होली,
कोई जानता नहीं,इस अंजान शहर में
जाऍ भी तो जाऍ आखिर किसके पास
इन काम-काज के बेकार चक्करों में
घर ना जा पाने से थोडा नाराज
थी होली,
सोचता रहा की क्या करुं अकेले
तो पिछली यादों की पोटली खोली
मन जैसे रंगो में नहा गया 'शेष'
तसब्बुर में बसी कितनी जानदार
थी होली... .
bahut khub.....
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