दिल मेरा मुझसे हमेशा ये सवाल पूंछता है
अभी और कितने गम है ये हिसाब पूंछता है
बैठ जाते हो रातों को उठ-उठ के अक्सर
अभी और कितना रुलाएगा ये ख्वाब पूंछता है
भूल जाऍ नाम पर चेहरा याद रह जाता है
क्या वो अब भी करेगा ये सलाम पूंछता है
यू ही चंद लमहों के सुकून की खातिर
अभी और कितना पिओगे ये शराब पूछता है
सब कुछ तो खो चुके हो ज़मानें में 'शेष'
अभी और क्या मिलेगा ये ईनाम पूछता है
ग़म को पोशीदा ख़ुशी आम करे
ReplyDeleteज़र्फ़वाला तो येही काम करे
ये समन्दर है तश्नालब कितना
लहर में कितनी जाँ तमाम करे