
फ़िक्रे बेरोजगारी ने क्या-क्या ना कराया
अपनों के साथ-साथ देश भी छुडाया
कल को बेहतर बनाने की कोशिश ने
नींदें उडाई और रात भर जगाया
जहां गए ओंधे वालों की पहचान मांगी
खाली इल्म कोई काम ना आया
खिडकी पे खडा मैं रात भर रोता रहा
जब ख्वाब में अपना घर नज़र आया
यकीं है अंधियारा रात का घटेगा जरुर
बादलों की शरारत नें चांद् छिपाया
नाउम्मीदियों के साए ने जब घेरा 'शेष'
दुआ मांगता मां का चेहरा नज़र आया
mai jab bhi tokare khaata hu naya mukaam milta hai
ReplyDeletetajurbe ki sakal banakar bhagbaan milta hai
yaad aati hai 'ami' ko puraani kahabate aab to
sabra ka har ek ko inaam milta hai..
जहां गए ओंधे वालों की पहचान मांगी
ReplyDeleteखाली इल्म कोई काम ना आया
खिडकी पे खडा मैं रात भर रोता रहा
जब ख्वाब में अपना घर नज़र आया
प्रभावित करती हैं यथार्थ परक पंक्तियाँ .....
बहुत सुन्दर खूबसूरत चित्रण| धन्यवाद|
ReplyDeleteBahut khoobsurat likha hai baba
ReplyDeleteRahul