ये ब्लाक एक आईना है,जिसमें कुछ शक्ले ख़ुद कि तो कुछ जमानें की नज़र आती हैं.मेरे ब्लाक में कुछ बिखरे से अल्फ़ाज, खुद से बात करती कुछ गजलें, कुछ शेर,और धुंधली सी तस्वीरें बनातीं चंद कविताऐ हैं....
'सिवा सुकून के कुछ और नहीं मिलता शायरों की दुकानों में'
'पर यही वो चीज़ है'शेष'जो नहीं बिकती दुनिया के बाजारों में'
अगर इस शायर के अल्फ़ाज आप को चंद लमहों का सुकून दे जाएं तो मैं समझूगा की मेरी इबादत ख़ुदा ने कुबूल कर ली..
अब के साल, परदेश में मेरे साथ छोटे से कमरे में, थोडा उदास थी होली, कोई जानता नहीं,इस अंजान शहर में जाऍ भी तो जाऍ आखिर किसके पास इन काम-काज के बेकार चक्करों में घर ना जा पाने से थोडा नाराज थी होली, सोचता रहा की क्या करुं अकेले तो पिछली यादों की पोटली खोली मन जैसे रंगो में नहा गया 'शेष' तसब्बुर में बसी कितनी जानदार थी होली... .