Saturday, April 9, 2011

बेरोजगारी.........





















फ़िक्रे बेरोजगारी ने क्या-क्या ना कराया
अपनों के  साथ-साथ  देश  भी  छुडाया


कल को बेहतर बनाने की कोशिश ने
नींदें उडाई  और  रात  भर  जगाया


जहां गए ओंधे वालों की पहचान मांगी
खाली  इल्म  कोई  काम  ना  आया


खिडकी पे खडा मैं रात भर रोता रहा
जब ख्वाब में अपना घर नज़र आया


यकीं है अंधियारा रात का घटेगा जरुर
बादलों  की  शरारत  नें चांद् छिपाया


नाउम्मीदियों के साए ने जब घेरा 'शेष'
दुआ मांगता मां का चेहरा नज़र आया